Sunday, July 28, 2013

सरहद की यादें

1 5 अगस्त 1947 एक ऐसा दिन जब देश आजादी के जश्न में डूबा था कुछ ऐसे भी थे जिनका घर परिवार सब उनसे छिना गया था । एक कविता समर्पित  उनके लिए जो कुछ दिन पहले अपना घर छोड़कर नयी जगह शायद अब नए मुल्क में आये थे ।

हुई शाम बैठा था आज सहज मन से
गुजरा आसमान से एक झुण्ड परिंदो का ।

निहारते , ताकते आँखे इकटक पीछा करते
कुछ संदेशा देना चाहती हो माँनो जैसे।

जा बैठी वो बगिया में पीपल के उस पेड़ पर
सांझ की बेला पर जाते थे जहा हम गाय चराने ।

था एक कुआँ  मन शीतल अपना हम करते थे
दादा जी के साथ बैठ आज़ादी के सपने देखे थे।

इक अवाज हुई मन पुलकित हुआ दौड़ पड़ा मै
बगिया से गिरे होगे आम्र फल मीठे से ।

सहसा नजरे आई जमीन पर जब ओझल हुए परिंदे  आँखों से 
मन लालायित हो उठा आज फिर से देखने को उन ख्वाबो को।

आगे बढ़ा, तार जमी पर बंधे हुए थे  पत्थर के खम्भों  से
मुल्क दूसरा था पार थे वो अब सरहद के।

कदम रुके, एक आह उठी , मायूस हुआ मन 
उड़ते सपनो को रोका था तारो की जंजीरों ने।

रोक लिया इंसानों को तूने सरहद के इन तारो से
गर रोक सकता उन लम्हों को सरहद पार आने से ।

उस आम के मीठे फल और पीपल की शीतल छावों को
दादी की मीठी लोरी दादा के चौपालों को ।

बना लिया सरहद तूने इन मिट्टी की दीवारो से
क्या है कोई दीवार जो रोक सके इन यादो को।

रोक नहीं सकता जब तू मन की इन गलियारो को
क्यों तोड़ नही देता तू इन मिटटी की दीवारों को ।

धन्यावाद
संतोष

Friday, July 26, 2013

कारगिल विजय दिवस -शहीदों के नाम


जब-2 सरहद पर दुश्मन ने हम पर आँख उठाई है
भारत माता के वीर सपूतो ने अपनी साहस दिखलाया है।

धैर्यवान ,सिरमोर जगत  को जब-2 किसीने ललकारा है
शौर्य ,वीर्यता भारत का हमने उनको दिखलाया है।

पिता ,पुत्र , भाई , सुहाग का हमने बलिदान चढ़ाया है
जब जब धरती माता पर आँख किसी ने  उठाया है।

सीना ताने , गोली खाते आगे बढ़कर ,कर गर्दन को कुर्बान यहाँ
ये धरती मेरी माँ है , इसका अहसास दिलाया है।

अडिग , अभय , अविचल आगे बढ़कर तिरंगा लाल चौक पर फहराया है
सिंह गर्जना सुनकर दुश्मन ने पीठ दिखाया है।

आओ उठे, मिलकर करे नमन उन धरती के वीर सपूतो का
दे कुर्बानी गर्दन की जिसने  माता की लाज बचाया है।

धन्यावाद
संतोष