Wednesday, October 30, 2013

एकता पुरुष-सरदार वल्लभभाई पटेल


अखंड भारत ..आज हम ये शब्द बड़े गर्व क साथ बोलते है और ये सच भी है की आज हजारो संस्कृतियो जातियों और भाषाओ के होते हुए भी हम एक है।

हमारे देश पर हजारो सालो से विदेशी ताकतों ने राज किया है जब देश आजाद हुआ तो देश छोटी -2 सियासतो में बिखरा हुआ था देश के सामने एक बड़ी समस्या थी देश को संगठित करना । सरदार वल्लभ भाई पटेल एक ऐसे रास्ट्रपुरुष है जिन्हें भारत को संगठित करने में अतुल्य योगदान दिया।

सरदार पटेल गुजरात के एक साधारण से गाँव से एक ऐसी विलक्षण प्रतिभा लेकर जन्मे थे । वकालत में इतने निपुण की अंग्रेजो को इनके सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं होती थी | सरदार पटेल खुद एक असीम साहस का एक उदहारण थे । एक बार जब इन्हें फोड़ा हुआ तो इन्होने खुद अपने हाथो से गरम लोहे से फोड़े को दागा जिसके कारन इन्हें लौह पुरुष की उपाधि प्राप्त हुई।

गाँधी जी के स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रेरित होकर बाद में सरदार पटेल स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े । देश की जनता पर आपके व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव था । असहयोग आन्दोलन में लोगो को जोड़ने का काम आपने बड़ी जोरो से किया और महज कुछ ही दिनों में तीन लाख से जादा लोगो को आन्दोलन से जोड़ा ।

देश सेवा के लिए त्याग करने वाले में सरदार पटेल का नाम अग्रणीय है । जब अंग्रेजो ने कर वसूली की सीमा बढ़ा दी तब इसका विरोध करने के लिए आपने कमिश्नर का पद छोड़कर एक ऐसा आन्दोलन शुरू किया  जिससे कर का विरोध और कर न देने की फैसला किया गया इस आन्दोलन के बाद आपको  सरदार की उपाधि मिली ।

आज हम लौहपुरुष के जन्मदिन पर एक संकल्प ले की हम उनके संघर्ष को बेकार नहीं जाने देंगे  देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहेगे ।

जय हिन्द जय भारत ।

Sunday, October 6, 2013

नजर आते है.......

हमारे मुल्क के हालात को बखूबी बयां करने वाली ये पंक्तिया जो देश की स्थिति को आँखों के सामने रख देती है ।

मुल्क तेरी बर्बादी के आसार नज़र आते है,
चोरों के संग पहरेदार नज़र आते है.!!

ये अंधेरा कैसे मिटे , तू ही बता ऐ आसमाँ,
रोशनी के दुश्मन चौकीदार नज़र आते है.!!

हर गली में, हर सड़क पे ,मौन पड़ी है ज़िंदगी,
हर जगह मरघट से हालात नज़र आते है.!!

सुनता है आज कौन द्रौपदी की चीख़ को,
हर जगह दुस्सासन सिपहसालार नज़र आते है.!!

सत्ता से समझौता करके बिक गयी है लेखनी,
ख़बरों को सिर्फ अब बाज़ार नज़र आते है.!!

सच का साथ देना भी बन गया है जुर्म अब,
सच्चे ही आज गुनाहगार नज़र आते है.!!

मुल्क की हिफाज़त सौंपी है जिनके हाथों मे,
वे ही हुकुम शाह आज गद्दार नज़र आते है.!!

खंड-खंड मे खंडित भारत रो रहा है ज़ोरों से,
हर जाति, हर धर्म के, ठेकेदार नज़र आते है.!!

आभार : डाॅ शैलेन्द्र मिश्रा, पटना

Wednesday, October 2, 2013

उदय - दो आदर्श देशभक्त

2 अक्टूबर स्वतंत्र भारत के दिन में सबसे महत्वपूर्ण दिन है । आज के दिन इस धरती पर दो ऐसे महापुरुष अवतरित हुए जिन्होंने न केवल हमें विदेशी शाशन से आजाद कराया बल्कि आने वाले पीढ़ी के लिए प्रेरणा बने ।

बचपन की एक कविता याद आ रही है

आज का दिन है दो अक्टूबर
आज का दिन है कितना महान ।
आज के दिन दो फूल खिले
जिससे महका हिन्दुस्तान ।।

आज  इन दो फूलो के दिखाए पथ पर चलना भूल कर हम आज के नेतृत्व गलत रास्ते पर चल रहे है ।

सत्य और अहिंसा के सिद्धात जिसने यह सिखाया था की हमें अपने अधिकारों के पाने के लिए हिंसा करने की जरूरत नहीं होती , जरूरत होती है लड़ाई में डटे रहने की, जरूरत होती है दृढ निष्ठां की । गांधीजी ने कहा था-

First they will laugh at you
Then they will ignore you
After that they will fight you
You will Win.

भूख हड़ताल हो या असहयोग आन्दोलन जीवन के हर कार्य से देशभक्ति की भावना व्यक्त करने वाले  को शत-2 नमन ।

धरती माँ के दुसरे फूल लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसे महापुरुष जिनका आभार कभी नहीं चुकाया जा सकता । जब देश पर पाकिस्तान ने आक्रमण किया और अमेरिका  ने गेहू निर्यात करने से मना कर दिया और देश में भुखमरी की स्थिति आ गई थी तो आपने "जय जवान जय किसान " का नारा देकर जवानो में जोश भर दिया और किसानो ने देश में हरित क्रांति ला दी । हफ्ते में इक दिन के उपवास का पालन देश ने गर्मजोशी  से किया था ।

आज हमारे पास साधन होते हुए भी सीमा पर जवान मजबूर और युवा बेरोजगार है   65 % युवा के देश को अपनी जरूरते विदेशो से लानी पड़ती है ,सेना को विदेश में बने हथियार  लाने पड़ते है। आज देश को जरुरत है ऐसे शास्त्री की जो युवा शक्ति को पहचाने और भारत की आत्मा किसानो को प्रेरित करे , जरुरत है गाँधी की जो भ्रस्टाचार जैसे कैसर से लड़ सके ।

जब तक देश को ऐसा नेत्रित्व नहीं मिलेगा तब तक हमें सच्ची आजादी नहीं मिलेगी ।

Wednesday, September 4, 2013

शिक्षक

"शिष्य अयोग्य होगे यदि वे अपने गुरु के विचारो की समालोचना किये बिना स्वीकार करे

सही मायने में वही शिक्षक है जो अपने विद्यार्थी को परिस्थितियों के अनुसार सोचने के लिए प्रेरित करता है"
-ड़ा सर्वपल्ली राधाकृषणन

पथ प्रदर्शक  मार्ग दर्शक
राह है दिखलाता शिक्षक ।

काले तख़्त पर लिख सफ़ेद स्याह से
उज्जवल भविष्य  बनाता शिक्षक।

कांच कुंभ सा शरीर कोमल
करता है साकार शिक्षक।

इश्वर प्राप्ति जीवन लक्ष्य
मार्ग है दिखलाता शिक्षक ।

मात्र-पित्र, भ्रात्र ,बनकर मित्र
साथ हर क्षण है शिक्षक ।

घिर जाते जब हम तमस में
ज्ञान-दीप्ति जलाता शिक्षक ।

मैं अकिंचन  ऋण बहुत
हीन सब आभार शिक्षक ।

हो कठिन जीवन पथ जब-जब
चाहूं आपका आशीर्वाद शिक्षक ।

-संतोष

Friday, August 9, 2013

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं

भारत एक ऐसा देश जो मुग़ल काल से लेकर अंग्रेजो के शासन काल तक सदियों से लड़ता आ रहा है और हम आज भी भ्रस्टाचार , कालाधन , सुरक्षा के लिए लड़ रहे है।

"बाटो और राज करो , लूट लो भरे खजानों को
इरादे-ए-दुश्मन आज भी है  वही, बस हिजाब बदल गए है"

आज हमें हर लड़ाई के पहले कवि दुष्यंत कुमार ए पंक्तिया याद  रखनी चाहिए ।
 
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

कवि : दुष्यंत कुमार

धन्यवाद

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


राम प्रसाद बिस्मिल के द्वारा गोरखपुर जेल में लिखी गई पंक्तिया जिसने भारत के नौजवानों में जोश भर दिया था । नमन आज ऐसे वीर का जिनकी  बहादुरी आज भी दिलो में जिन्दा है ।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर

कफ़न,जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में ह

Sunday, July 28, 2013

सरहद की यादें

1 5 अगस्त 1947 एक ऐसा दिन जब देश आजादी के जश्न में डूबा था कुछ ऐसे भी थे जिनका घर परिवार सब उनसे छिना गया था । एक कविता समर्पित  उनके लिए जो कुछ दिन पहले अपना घर छोड़कर नयी जगह शायद अब नए मुल्क में आये थे ।

हुई शाम बैठा था आज सहज मन से
गुजरा आसमान से एक झुण्ड परिंदो का ।

निहारते , ताकते आँखे इकटक पीछा करते
कुछ संदेशा देना चाहती हो माँनो जैसे।

जा बैठी वो बगिया में पीपल के उस पेड़ पर
सांझ की बेला पर जाते थे जहा हम गाय चराने ।

था एक कुआँ  मन शीतल अपना हम करते थे
दादा जी के साथ बैठ आज़ादी के सपने देखे थे।

इक अवाज हुई मन पुलकित हुआ दौड़ पड़ा मै
बगिया से गिरे होगे आम्र फल मीठे से ।

सहसा नजरे आई जमीन पर जब ओझल हुए परिंदे  आँखों से 
मन लालायित हो उठा आज फिर से देखने को उन ख्वाबो को।

आगे बढ़ा, तार जमी पर बंधे हुए थे  पत्थर के खम्भों  से
मुल्क दूसरा था पार थे वो अब सरहद के।

कदम रुके, एक आह उठी , मायूस हुआ मन 
उड़ते सपनो को रोका था तारो की जंजीरों ने।

रोक लिया इंसानों को तूने सरहद के इन तारो से
गर रोक सकता उन लम्हों को सरहद पार आने से ।

उस आम के मीठे फल और पीपल की शीतल छावों को
दादी की मीठी लोरी दादा के चौपालों को ।

बना लिया सरहद तूने इन मिट्टी की दीवारो से
क्या है कोई दीवार जो रोक सके इन यादो को।

रोक नहीं सकता जब तू मन की इन गलियारो को
क्यों तोड़ नही देता तू इन मिटटी की दीवारों को ।

धन्यावाद
संतोष

Friday, July 26, 2013

कारगिल विजय दिवस -शहीदों के नाम


जब-2 सरहद पर दुश्मन ने हम पर आँख उठाई है
भारत माता के वीर सपूतो ने अपनी साहस दिखलाया है।

धैर्यवान ,सिरमोर जगत  को जब-2 किसीने ललकारा है
शौर्य ,वीर्यता भारत का हमने उनको दिखलाया है।

पिता ,पुत्र , भाई , सुहाग का हमने बलिदान चढ़ाया है
जब जब धरती माता पर आँख किसी ने  उठाया है।

सीना ताने , गोली खाते आगे बढ़कर ,कर गर्दन को कुर्बान यहाँ
ये धरती मेरी माँ है , इसका अहसास दिलाया है।

अडिग , अभय , अविचल आगे बढ़कर तिरंगा लाल चौक पर फहराया है
सिंह गर्जना सुनकर दुश्मन ने पीठ दिखाया है।

आओ उठे, मिलकर करे नमन उन धरती के वीर सपूतो का
दे कुर्बानी गर्दन की जिसने  माता की लाज बचाया है।

धन्यावाद
संतोष